" संत कबीर दास "
🔵 रचनाएं:- 1. साखी.
2. सबद.
3. रमैनी.
🔵 भाव पक्ष :-
(1.) निर्गुण ब्रह्म की उपासना:- कबीर निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे । उनका उपवास, अरुण, अमान, अनुपम सूक्ष्मतत्व है । इसे बे राम नाम से पुकारते हैं, कबीर के 'राम निर्गुण' निराकार परब्रह्मा है |
(2.) प्रेम भावना और भक्ति:- कबीर ने ज्ञान को महत्व दिया । उनकी कविता में स्थान स्थान पर प्रेम और भक्ति की उत्कृष्ट भावना परिलक्षित होती है। उनका कहना है "यह तो घर है प्रेम का खाला का घर नहीं है " और ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय !" इत्यादि !
(3.) रहस्य भावना :- परमात्मा से विविध संबंध जोड़ कर अंत में ब्रह्मा में लीन हो जाने की भाव अपनी कविता में कबीर ने व्यक्त किए हैं ||
(4.) समाज सुधार और नीति उपदेश :- सामाजिक जीवन में फैली बुराइयों को मिटाने के लिए कबीर की वाणी करकस को उठी । कबीर ने समाज गत बुराइयों का खंडन तो किया ही साथ - साथ आदर्श जीवन के लिए नीति पूर्ण उपदेश भी दिया । कबीर के काव्य में इस्लाम के योग साधना, अहिंसा, सूफियों की प्रेम साधना आदि का समावेश दिखाई देता है !!
इनके काव्य में शांत रस की प्रधानता है आत्मा परमात्मा के मिलन का श्रंगार ही शांत रस बन गया है ।
🔵 कला पक्ष :-
(1.) आकृतिम भाषा :- कबीर की भाषा अपरिष्कृत है । उसमें कृतिमता का अंश भी नहीं है । स्थानी बोलचाल के शब्दों की प्रधानता दिखाई देती है । उसमें पंजाबी, राजस्थानी, उर्दू, फारसी, आदि भाषाओं के शब्दों का विकृत रूप प्रयोग किया गया है । इससे भाषा में विविध चित्र आ गई है कबीर की भाषा में भाव प्रकट करने में समर्थ विद्यमान है । इसकी भाषा में पंचमेल खिचड़ी अथवा शुद्ध कड़ी भी कहा जाता है ||
(2.) सहज शैली :- कबीर ने सहज सरल व सरस शैली में अपने उपदेश दिए हैं ! भाव प्रकट करने के दृष्टि से कबीर की भाषा पूर्णता: सक्षम है । कब में विरोधाभास दुर्बलता एवं व्यंगात्मकता विद्यमान है ।।
(3.) अलंकार :- कबीर के काव्य में स्वभावत: तथा अलंकारिकता आ गई है । उपमा, रूपक संगरूपक, अन्योक्ति, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास आदि अलंकारों की प्रचुरता है ||
(4.) छंद :- कबीर के साखियो में दोहा छंद का प्रयोग हुआ है । सबद पद है तथा रमैनी चौपाई छंद दो से मिलते हैं " कहरवा "छंद में उनकी रचनाएं में मिलता है। इन शब्दों का प्रयोग संदेश का है ||
🔵 साहित्य में स्थान :- कबीर समाज सुधारक एवं युग निर्माता के रूप में सदैव संस्मरण किए जाएंगे । उनके काव्य में निहित संदेश और उपदेश के आधार पर नवीन संभावित समाज की संरचना संभव है ।। डॉक्टर द्वारका प्रसाद सक्सेना ने लिखा है:- " कबीर एक उच्च कोटि के साधक, सत्य के उपासक और ज्ञान के अन्वेषक थे ! उनका समस्त सहित एवं जीवन मुक्त संत गुण एवं गंभीर अनुभवों का भंडार है "
English मीडियम
Poet Introduction / Poetic Features ( mp Board )
" Saint Kabir Das "
🔵 Compositions:- 1. Sakhi.
2. Sabad.
3. Ramani.
🔵 Bhava Paksha :-
(1.) Worship of Nirguna Brahma:- Kabir was a worshiper of Nirguna Brahma. His fasting, Aruna, Aman, is an incomparable subtlety. It is called by the name of Bey Ram, Kabir's 'Ram Nirgun' is the formless Parabrahma.
(2.) Love feeling and devotion:- Kabir gave importance to knowledge. His poetry reflects the transcendent feeling of love and devotion from place to place. They say, “This is the house of Prem, not the house of Khala.” And two and a half akhar prem ka padhe so Pandit hoy!” and so on!
(3.) Rahasya Bhavna:- Kabir has expressed in his poem the feeling of finally merging into Brahma by adding various relationships with God.
(4.) Social reform and policy preaching: - Kabir's voice arose to Karkas to eradicate the evils spread in social life. Kabir not only refuted the evils of the society but also gave ethical and moral teachings for an ideal life. In the poetry of Kabir, the inclusion of yoga practice of Islam, non-violence, love practice of Sufis etc. is visible.
In his poetry, there is a predominance of calm juice.
🔵 Art side :-
(1.) Aktim language :- Kabir's language is crude. There is no element of creativity in it. The predominance of local colloquial words is visible. In it, the words of Punjabi, Rajasthani, Urdu, Persian, etc. have been used in a distorted form. With this, a diverse picture has come in the language, it is capable of expressing emotion in the language of Kabir. In its language it is also called Panchmel Khichdi or Pure Kadhi.
(2.) Sahaj Style: - Kabir has given his sermons in a simple and simple style! Kabir's language is completely capable of expressing emotion. When does paradox, weakness and sarcasm exist.
(3.) Alankar:- Naturally and ornamentation has come in the poetry of Kabir. There is an abundance of similes, metaphor, allegory, allegory, paradox etc.
(4.) Verses:- Doha verses have been used in Kabir's Sakhio. Sabad is the verse and Ramani meets Chaupai verse two "Kaharva" is found in his compositions in the verse. These words are used for the message.
🔵 Place in Literature:- Kabir will always be remembered as a social reformer and era builder. On the basis of the message and teachings contained in his poetry, the structure of a new potential society is possible. Dr. Dwarka Prasad Saxena has written:- "Kabir was a seeker of a high order, a worshiper of truth and a seeker of knowledge! His whole and free life is a storehouse of saintly qualities and serious experiences"